- ऑपरेशन महादेव (Operation Mahadev ) की पृष्ठभूमि
22 अप्रैल, 2025 – यह दिन भारत के लिए काले दिन जैसा था, जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में लश्कर-ए-ताइबा के आतंकियों ने कायरता भरा हमला किया। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें आतंकियों ने पीड़ितों से उनका धर्म पूछकर उन्हें मौत के घाट उतारा। इस बर्बरता ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
भारत की जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था और हर कोई बस एक ही बात कह रहा था – “इसका बदला कब लिया जाएगा?” यही वह बिंदु था, जहां से ऑपरेशन महादेव की योजना ने आकार लेना शुरू किया।
- ‘महादेव’ नाम क्यों रखा गया इस मिशन का?
Operation Mahadev ऑपरेशन का नाम ‘महादेव’ इसलिए रखा गया क्योंकि यह अभियान जिस क्षेत्र में चलाया गया, वह श्रीनगर की जबरवान रेंज का हिस्सा है। इस रेंज का एक महत्वपूर्ण और पवित्र शिखर है महादेव चोटी। यह चोटी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत अहम है।
महादेव नाम इस अभियान को न केवल पहचान देता है, बल्कि यह दर्शाता है कि यह मिशन केवल सैन्य कार्यवाही नहीं, बल्कि एक पवित्र कर्तव्य की तरह निभाया गया।
- कैसे मिली आतंकियों की लोकेशन?
पहलगाम हमले की जांच के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को एक बेहद गंभीर सुराग हाथ लगा – एक सैटेलाइट कम्युनिकेशन डिवाइस जिसे हमले के वक्त इस्तेमाल किया गया था।
कई हफ्तों तक इस डिवाइस के लोकेशन सिग्नल ट्रैक किए जाते रहे। फिर जुलाई के अंतिम सप्ताह में अचानक यह डिवाइस श्रीनगर के दाचीगाम वन क्षेत्र में एक्टिव हो गया। इससे सेना को संदेह हुआ कि पहलगाम हमले से जुड़े आतंकी इसी इलाके में छिपे हो सकते हैं।
- Operation Mahadev की रणनीति कैसे बनी?
डिवाइस के एक्टिव होते ही सेना ने तुरंत 24 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) और 4 पैरा स्पेशल फोर्सेज को अलर्ट पर भेजा। एक सटीक प्लानिंग के साथ उन्होंने दाचीगाम के ऊपरी जंगलों में घेराबंदी शुरू की। यह इलाका अत्यंत दुर्गम है – पहाड़ी, घना जंगल और खतरनाक घाटियां।
जैसे ही आतंकियों की मौजूदगी की पुष्टि हुई, सेना ने पूरे क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई आतंकी बचकर भाग न सके।
- मुठभेड़ की शुरुआत और आतंक का अंत
आतंकियों को जब अहसास हुआ कि वे सेना की घेराबंदी में फंस चुके हैं, तो उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। सेना ने भी करारा जवाब दिया। यह मुठभेड़ लगभग पांच घंटे तक चली, जिसमें दोनों ओर से भीषण गोलीबारी हुई।
अंततः, सेना ने तीन आतंकियों को ढेर कर दिया। इनमें से एक की पहचान सुलेमान उर्फ आसिफ के रूप में हुई – जो पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड था। बाकी दो आतंकियों के नाम अबू हमजा उर्फ हारिस और यासिर बताए जा रहे हैं। ये सभी पाकिस्तान से प्रशिक्षित लश्कर-ए-ताइबा के आतंकी थे।
- आतंकियों से क्या-क्या मिला?
मुठभेड़ के बाद जब क्षेत्र की तलाशी ली गई तो सेना को आतंकियों के पास से कई घातक हथियार मिले, जिनमें शामिल थे:
- एक M4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल (अमेरिका निर्मित)
- दो AK सीरीज की राइफलें
- भारी मात्रा में गोला-बारूद और ग्रेनेड
- एक सैटेलाइट कम्युनिकेशन डिवाइस, जिससे पूरे मिशन का सुराग मिला था
- क्षेत्र की सामरिक चुनौतियां
दाचीगाम वन क्षेत्र बेहद दुर्गम है – वहां तक पहुंचना ही चुनौतीपूर्ण होता है। यहां लंबे समय से आतंकी छिपने और मूवमेंट के लिए इस इलाके का फायदा उठाते रहे हैं।
पिछले साल भी इसी क्षेत्र में 10 नवंबर और 3 दिसंबर को मुठभेड़ें हुई थीं, जिनमें एक प्रमुख लश्कर आतंकी जुनैद भट मारा गया था।
- क्या बोले शहीद अधिकारी के पिता?
पहलगाम हमले में शहीद हुए लेफ्टिनेंट विनय नरवाल के पिता राजेश नरवाल ने सेना के इस ऑपरेशन को देश की जीत करार दिया। उन्होंने कहा:
“मैं जानता था कि हमारी सेना बदला लेगी। ये बहादुर जवान अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकियों का सफाया करते हैं। मैं उन्हें दिल से सलाम करता हूं।”
- ऑपरेशन महादेव का महत्व सिर्फ सैन्य नहीं, मनोवैज्ञानिक भी है
Operation Mahadev केवल एक जवाबी हमला नहीं था। यह उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्होंने अपने परिजनों को खोया। यह मनोवैज्ञानिक तौर पर आतंकियों को यह संदेश देता है कि भारत उन्हें कभी चैन से नहीं रहने देगा।
सेना ने दिखा दिया कि चाहे वो घने जंगल हों, ऊंचे पहाड़ हों या सीमा पार की साजिशें, भारतीय सैनिक हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं।
- निष्कर्ष: एक सफल और प्रेरणादायक अभियान
ऑपरेशन महादेव एक सटीक खुफिया जानकारी, धैर्य, साहस, और रणनीति का अद्भुत उदाहरण है। इस ऑपरेशन से भारतीय सेना ने फिर से साबित कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति स्पष्ट है – “बात नहीं, सिर्फ कार्रवाई।”